अजीब सी यह बात
अपने ही देश में हम कुछ अजनबी हो गए
अपने हुए पराये
पर पराये अपने ना हुए
ना लोग अपने रहे ना ही स्वभाव
वोह बस मतलब का व्यव्हार रखने लगे
दीवारें हैं जो पहचानती हैं अब हमको
हम दीवारों से ही बत्याते चले गए
खुद से बात कर, दिल बहलता ज़रूर है
पूछता लेकिन वोह कुछ सवाल जिनके जवाब नहीं
क्या कहूं जब पूछे वोह मुझसे
की जो कल तक साथ था वोह अब पास क्यूँ नहीं
समझाऊँ कैसे की सच ना था खाब था वो
अभ जो दीखता वो रूप कोइ और है
वोह न था अपना कभी, और ना होगा
होने वालों का रंग रूप कुछ और है