Wednesday, May 19, 2010

अजनबी

अजीब सी यह बात
अपने ही देश में हम कुछ अजनबी हो गए
अपने हुए पराये
पर पराये अपने ना हुए

ना लोग अपने रहे ना ही स्वभाव
वोह बस मतलब का व्यव्हार रखने लगे
दीवारें हैं जो पहचानती हैं अब हमको
हम दीवारों से ही बत्याते चले गए

खुद से बात कर, दिल बहलता ज़रूर है
पूछता लेकिन वोह कुछ सवाल जिनके जवाब नहीं
क्या कहूं जब पूछे वोह मुझसे
की जो कल तक साथ था वोह अब पास क्यूँ नहीं

समझाऊँ कैसे की सच ना था खाब था वो
अभ जो दीखता वो रूप कोइ और है
वोह न था अपना कभी, और ना होगा
होने वालों का रंग रूप कुछ और है