Tuesday, August 12, 1997

उसी के लिये तो आज भी जिन्दा हूँ मै

गमे दर्द बयाँ करने से हलका होता
तो कबके कर देते
रोने से गम कम होता
तो येह गम कबके बहा देते

यूँ ही नहीं थामे बैठा हूँ मैं
मेरे जख्म, और वोह यादें
इन्हीं के सहारे तो आज भी जिन्दा हूँ मै

उस एक पल को पाने को
फ़िर इतनी बार मरने को त्यार हूँ मै
अगर उसे ही भुला दिया तो
जीने का सहरा क्या रहा

आज भी जीता हूँ मै
वो लम्हें, हर साँस मे मेरी
बीत गया तो क्या
उसी के लिये तो आज भी जिन्दा हूँ मै

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